Saturday, December 28, 2013

भूख....एक मज़दूर की...


भूख....एक मज़दूर की...Hunger....is not an entertainment/fast/pizza/dieting...for those families who do not get food!

पेट खाली हुआ, तो पता चला भूख लगी है,घर में चुल्लाह जला नही, तो पता चला भूख लगी है,
परिवार बड़ा है....घरवाली कही से रोटिया लाई थी चार, बट गयी, तो पता चला भूख लगी है..

Recently on 10th Dec 2013, Carits India have launched a campaign on -One human Family food for all! to understand more about hunger and how it relates with the concept -"one Human family".. I have spent evening few hours with people involved in construction work ( stying on footpath and in huts) near my house in Dwarka (New Delhi) and later on two evenings with a construction worker family ( basic a homeless family) to understand what 'hunger' is for them....

It was difficult to explain ...and was difficult to even know that there are many homeless people, construction worker, daily wages people in cities like Delhi and I hope in other cities also go to their bed ( on floor-that the only bed with them in this chilled winter) with entire family without food....is this not surprising that entire family is sleeping without food..... (आप के सिर्फ़ आँसू नही आएँगे...लेकिन आप रो देंगे..).....for many of us being hunger is fast, being hunger is an entertainment, being hunger is losing our weight, being hunger is going out for food, being hunger means pizza.....but for more than us...many many more than us...many people are there for whom 'hunger is pain...a family pain' ...just with my feelings i put some words for construction worker/homeless people facing 'hunger'....

भूख....एक मज़दूर की...

पेट खाली हुआ, तो पता चला भूख लगी है,
घर में चुल्लाह जला नही, तो पता चला भूख लगी है,

दिन भर कमारतोड मज़दूरी की , ष्हां को मलिक के पास गया,
मज़दूरी मिली नही, तो पता चला भूख लगी है,

इधर-उधर से कुछ पैसे उधार लिए, बाज़ार गया,
मुट्ठी भर भी आनाज मिल ना पाया, तो पता चला भूख लगी है,

घर पहुचा ...तो देखा बच्चो के चहेरे पे एक आस थी....
सिर्फ़ गले लगाने के सिवाए , कुछ दे ना पाया , तो पता चला भूख लगी है....

परिवार बड़ा है....घरवाली कही से रोटिया लाई थी चार, बट गयी, तो पता चला भूख लगी है..

मिट्टी के फर्श पे , या सड़क किनारे....नींद ना आई...
सुबह की बेचानी..की शयड कुछ जुगाड़ हो जाए....कही से...भर पेट खाना मिल जाए....
सोच के रते गुजर दी तो पता चला भूख लगी है....
पेट खाली हुआ, तो पता चला भूख लगी है,
घर में चुल्लाह जला नही, तो पता चला भूख लगी है,

ना जाने कब मितेगी.....या मिटा देगी हमे ये भूख.....

-विनोद पांडे

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